किसान को अगर अपने खेत की पैदावार बढ़नी है तो उसे खेत की मिटटी को बहतर बनाना होगा | किसान के खेत की मिट्टी में कार्बन व प्राक्रतिक उर्वरकों की उपुक्त मात्रा में उपलब्ध है, तो उस मिट्टी में फसल भी अच्छी होगी और बीमारियां भी कम आएंगी | पशुओं के गोबर में भरपूर मात्रा में कार्बन और जैविक फर्टिलाइजर मौजूद होते हैं जो हर तरह की मिट्टी को बेहतर बना सकते हैं | आइए समझे गोबर से 5 तरह की बेहतरीन खाद किस तरह से बना सकते |
गोबर खाद कितनी ?
गोबर खाद की जानकारी से पहले मैं थोड़ा सा सुभाष पालेकर जी के बारे में बता देता हु | सुभाष पालेकर जी मास्टर महाराष्ट्र के किसान हैं जिन्होंने एग्रीकल्चर में मास्टर तक की पढ़ाई की है | जिस प्रकार से सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट में क्रिकेट के भगवान के रूप में देखा जाता है | उसी प्रकार सुभाष पालेकर जी भी किसानों के लिए किसी भगवान से कम नहीं है | उनके द्वारा जैविक कृषि में सफल प्रयोग से किसानों का बहुत लाभ हुआ है |अगर आपको समय मिलता है तो सुभाष पालेकर जी द्वारा लिखित बुक जरूर पढ़े या उनके यूट्यूब चैनल पर जा करके, उनके द्वारा बनाई गई वीडियो को सुने और समझे |
श्री सुभाष पालेकर जी ने देखा कई किसान पिछले कई सालों से दूसरे किसानों से या फिर शहरों से गोबर की खाद की ट्रालियां खरीद कर प्रति एकड़ 10-20 ट्रोली खाद की डालते आ रहे हैं । ऐसा केवल बड़े किसान ही कर सकते हैं । छोटा किसानअपने खेत में इतना गोबर खाद खरीद कर नहीं डाल सकता है । उसकी आर्थिक स्थिति उसे आज्ञा नहीं देती है ।
किसानों के दिमाग में यह बात घर कर चुकी है कि यदि कुदरती खेती करनी है तो गोबर खाद की ज़्यादा मात्रा में ही डालनी पड़ेगी । इसका परिणाम बिल्कुल उल्टा हुआ है । जो छोटे और मध्य – वर्गीय किसान हैं , जो हर साल गोबर खाद नहीं खरीद सकते, तो उन्होंने ज्यादा से ज़्यादा मात्रा में रासायनिक खादें डालनी शुरू कर दी । इस कारण भूमि बंजर बनती गई तथा पैदावार हर साल कम होने लगी है |
लेकिन श्री सुभाष पालेकर जी के द्वारा बतलाई तकनीक से फसलें लेने और उपज बढ़ाने के लिए न तो रासायनिक खादों को डालने की जरूरत है तथा न ही गोबर खाद खरीद कर डालने की । पालेकर जी की लगातार छ : साल की खोजों के पता चला कि यदि आपके पास 15-30 एकड़ भूमि है तो आपके पास केवल एक देसी गाय और एक बैल का होना काफी है ।
पालेकर जी हर मौसम की सभी फसलों के ऊपर अलग-अलग मात्रा में गोबर खाद डालकर प्रयोग किया है एक बैलगाड़ी से लेकर 500 किलो छानी हुई खाद् डालकर प्रयोग किया है | वो देखना चाहता थे की प्रति एकड़ में कम से कम कितनी गोबर खाद की जरूरत है |
श्री सुभाष पालेकर जी के प्रयोग से पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि जिस प्रकार रसायनिक खादे फसलों के पूरी तरह की पूरी खुराक नहीं है, उसी प्रकार गोबर की खाद भी फसल का खुराक नहीं है यदि ज़रूरी ही डालनी हो तो जीवाणु समूह ( कल्चर ) के रूप में सिर्फ जाग लाने के तौर पर प्रति एकड़ प्रति फसल 100 किलो गोबर खाद बहुत से ज़्यादा डालने की कोई ज़रूरत नहीं है ।
यदि आपके पास एक देसी गाय और दो बैल हैं तो आप उनके गोबर खाद से इस ढंग से 15 एकड़ भूमि में अच्छी-खासी फसल ले सकते हैं । न तो कोई रासायनिक खाद डालने की जरूरत है और न ही खरीद कर ट्रालियाँ भर – भर कर गोबर खाद डालने की ज़रूरत है |
गोबर से खाद बनाने की विधि :-
गोबर को किसी छायादार स्थान पर पतली परत के रूप में बिछा दें या फैला दें | उसके उपरांत उसे लगभग 7 से 10 दिन तक सूखने दें | सूखने के उपरांत गोबर के छोटे -बड़े ढेले हो जाएंगे | इन सूखे गोबर के ढेले को उनको किसी यंत्र की सहायता से बारीक कर ले | इसके बाद रेत छानने वाली छलनी से इस खाद को छान लें | अब इस खाद को बोरियों में भर कर छाया में रख लो । बीज बीजने के साथ–साथ ही प्रति एकड़ , सौ किलो खाद बीजाई करते हुए खेत में डाले |
खेत में सुखी खाद का प्रयोग है करते हैं तो आपको बाजार से खरीद कर रसायनिक खाद आने की जरूरत नहीं पड़ेगी | इस तकनीक से आपको उतनी ही पैदावार मिलेगी जितने आप रासायनिक खेती से लेते हैं |
एक बात का ध्यान रखना जरूरी है देसी गाय का गोबर केवल खाद नहीं है, यह एक जाग कल्चर है । जिस प्रकार सौ लीटर दूध का दही जमाने के लिए दही का एक चम्मच ही जाग कल्चर के रूप में काफी होता है उसी तरह ही प्रति के लिए गाय के 100 किलो गोबर की जरूरत होती है ।
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