प्राकृतिक रूप से मिट्टी में कुछ ऐसे सूक्षम जीवाणु पाये जाते हैं, जो वायु मण्डलीय नैट्रोजन को व मिट्टी में मोजूद तत्वों को पोधो को लिए पोषक तत्वों में बदल देते हैं। ऐसें सूक्षम जीवाणुओं को जैविक या जैव उर्वरक कहते है | अंग्रेजी भाषा में जैविक उर्वरक को बायो फर्टिलाइजर के नाम से भी जाना जाता है
जैविक उर्वरक कितने प्रकार के होते हैं:-
- राइजोबियम बायो फर्टिलाइजर
- एजोटोबेक्टर बायो फर्टिलाइजर
- एजोस्पाइरिलम बायो फर्टिलाइजर
- फास्फोटिका सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया PSP
- पोटाश सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया KSP
- जिंक सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया
- माइकोराइजा
- नील हरित शैवाल
आइए इन सभी जैविक उर्वरकों को विस्तार से समझे | इन्हें हम कैसे फसल और मिट्टी में उपयोग कर सकते हैं |
राइजोबियम बायो फर्टिलाइजर
राइजोबियम एक मृदा जीवाणु है जो पौधों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करता है। चूंकि राइजोबियम नाइट्रोजन को स्वतंत्र रूप से स्थिर नहीं कर सकता है, यह पौधों के साथ एक सहजीवी जुड़ाव बनाता है।
राइजोबियम जीवाणु फसल विशिष्ट होती है, अर्थात अलग-अलग फसल के लिए अलग- अलग प्रकार के राइजोबियम का प्रयोग होता है । जिसके प्रत्येक एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं।
राइजोबियम बायो फर्टिलाइजर किन फसलों में प्रयोग किया जा सकता है
अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम जैव उर्वरक के अलग-अलग पैकेट उपलब्ध होते हैं तथा निम्न् फसलों में प्रयोग किये जाते हैं।
- मूंग, उर्द, अरहर, चना, मटर, मसूर आदि।
- तिलहनी मूंगफली, सोयाबीन।
- अन्यः रिजका, बरसीम एवं सभी प्रकार की वीन्स।
राइजोबियम जैविक उर्वरक के लाभ :-
- राइजोबियम के प्रयोग से फसलों को नाइट्रोजन (50 से 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर) की उपलब्धता बढ़ जाती है
- राइजोबियम जीवाणु कुछ हारमोन एवं विटामिन भी बनाते हैं,जिससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है और जड़ों का विकास भी अच्छा होता है।
- उपज में 25 से 35 प्रतिशत की वृद्धि देता है |
- प्रति हेक्टेयर 100 से 200 किलो यूरिया की बचत होती है
- मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ता है।
- पौधों की वृद्धि में मदद करता है।
राइजोबियम बायो फर्टिलाइजर को कैसे इस्तेमाल करे:-
बीज उपचार:
- 250 मिली. तरल जैव उर्वरक का 2 -3 लीटर पानी में घोल बनाए
- इस घोल को 50 -60 किग्रा. बीज के ढेर पर डालकर हाथो से मिलाए जिससे बीजो पर जैव उर्वरक समान रूप से मिल जायें
- उपचारित बीजो को छाया में सुखाकर यथाशीघ्र ही बुवाई कर दें
जड़ उपचार:
- यह विधि रोपाई वाली फसलों के लिए उपयुक्त हैं
- 250 मिली. तरल जैव उर्वरक का 4 -5 लीटर पानी में घोल बनाए
- एक एकड़ के लिए पर्याप्त पौधों की जड़ों को 20 -30 मिनट तक घोल में डुबाए\
- उपचारित पौधों की यथाशीघ्र ही रोपाई कर दे
मृदा उपचार:
- प्रति एकड़ उपचार हेतु 300 -400 मिली. तरल जैव उर्वरक की आवश्यकता पड़ेगी
- 300 -400 मिली. तरल जैव उर्वरक को 50 -100 किग्रा. मिट्टी /बालू /कम्पोस्ट में अच्छी तरह से मिलाये
- इस मिश्रण को बुवाई के समय या 24 घंटा पूर्व एक एकड़ क्षेत्रफल में समान रूप से बिखेर दे।
एजोटोबेक्टर जैव उर्वरक
एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक वायुमंडलीय नाइट्रोजन को परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराता है तथा वृद्धि हार्मोन बनाता है, जिससे जड़ों का विकास होता है। यह कुछ कीटनाशक पदार्थ भी छोड़ता है, जिससे जड़ों की बीमारियों से रक्षा होती है।
एज़ोटोबैक्टर सबसे उपयोगी सूक्ष्मजीवों में से एक है क्योंकि यह न केवल फसल वृद्धि को बढ़ावा देता है बल्कि यह मिट्टी को उपजाऊ और स्वस्थ भी बनाता है। एज़ोटोबैक्टर को साइटोकिन्स, गिबरेलिक एसिड, इंडोल एसिटिक एसिड और विटामिन का उत्पादन करने के लिए जाना जाता है जो फसल के विकास को बढ़ावा देता है और कुछ एज़ोटोबैक्टर प्रजातियां एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन करने के लिए भी जानी जाती हैं, जो रोगजनकों के कारण जड़ों की बीमारी की संख्या को नियंत्रित करती हैं। उर्वरक किसी भी फसल (दलहनी जाति की फसलों को छोड़कर) में प्रयोग किया जा सकता है।
एज़ोटोबैक्टर बायो फर्टिलाइजर के लाभ:-
- फसलों की 10 से 20 प्रतिशत तक पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।
- इसके प्रयोग करने से 20 से 30 किग्रा० यूरिया की बचत भी की जा सकती है।
- इनके प्रयोग करने से अंकुरण शीघ्र और स्वस्थ होते हैं तथा जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।
- इन जैव उर्वरकों के जीवाणु बीमारी फैलाने वाले रोगाणुओं का दमन करते हैं जिससे फसलों का बीमारियों से बचाव होता है तथा पौधों में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है।
- ऐसे जैव उर्वरकों को प्रयोग करने से जड़ों एवं तनों का अधिक विकास होता है, जिससे पौधों में तेज हवा, अधिक वर्षा एवं सूखे की स्थिति को सहने की क्षमता बढ़ जाती है।
- यह बीज के अंकुरण में सुधार करता है।
- यह उच्च नमक वाली मिट्टी में भी पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा और फसल की वृद्धि को बढ़ावा देने वाले पदार्थों का उत्पादन करके फसलों को लाभ पहुंचा सकता है।
- यह क्षारीय मिट्टी में पौधों की वृद्धि को भी बढ़ावा देता है।
- यह रासायनिक उर्वरकों पर फसलों की निर्भरता को कम करता है।
एज़ोटोबैक्टर जैविक उर्वरक को कैसे इस्तेमाल करे:-
बीजोपचार :- 2-2.5 मिली एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक को पर्याप्त पानी में मिलाकर बीज (1 किग्रा) को इस घोल से अच्छी तरह से ढककर बुवाई से पहले 3-4 घंटे के लिए छाया में सुखा लें।
स्प्रे :- 250 मिली एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक को 150-200 लीटर पानी में एक एकड़ के लिए मिलाएं।
मिट्टी का प्रयोग- 500 मिली एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक को 100 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई एफवाईएम के साथ मिलाया जा सकता है। मिश्रण को अच्छी तरह मिला लें और आखिरी जुताई से पहले इसे एक एकड़ जमीन पर फैला दें।
एजोस्पाइरिलम जैव उर्वरक (Azospirillum)
एजोस्पाइरिलम भी नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाला एक सूक्ष्म जीवाणु है जो गैर दलहनी पौधों के लिये लाभकारी होता है। यह सूक्ष्म जीवाणु भी जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण के साथ -साथ पोधो के विकाश में सहायक हार्मोंस का स्राव करता है जो अंकुरण से लेकर पौधे की वृद्धि तक में लाभकारी होते हैं। एजोस्पाइरिलम और एजोटोबैक्टर दोनों बायो फर्टिलाइजर का उपयोग करने की मात्रा और लाभ भी दोनों एक जैसे हैं |
फॉस्फोरस सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया PSP बायो फर्टिलाइजर
हम कई वर्षो से लगातार फॉस्फेटिक रसायन उर्वरक खाद (डी.ए.पी.) का भूमि में प्रयोग करते आ रहें हैं । इस रसायन खाद से दी गई फॉस्फोरस की मात्रा को पौधा एक तिहाई ही ग्रहण कर पाता है, शेष दो तिहाई फॉस्फोरस अघुलनशील रूप में परिवर्तित हो जाती है जिसे पौधा ग्रहण नहीं कर पाता ।
फॉस्फोरस सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया जिसे हम पी. एस. बी. जीवाणु के नाम से जानते हैं, यह कल्चर फास्फोरस घोलने वाले जीवित सूक्ष्म जीवाणुओं का यौगिक होता है। इसके प्रयोग ये मिट्टी में उपस्थित फास्फोरस तत्व घुलकर फसलों को उपलब्ध होता है, जिससे उत्पादन एवं / उत्पादकता तो बढ़ती है साथ ही मृदा स्वास्थ्य भी बढ़ता है और प्रदूषण कम होता है। साथ ही खेत में फास्फोरस धारी उर्वरकों का अत्यन्त कम प्रयोग करना पड़ता है । इसके प्रयोग से फास्फोरस तत्व को पौधे आसानी से ग्रहण कर लेते हैं । इसका प्रयोग करने से 10 से 20 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि होती है और साथ ही साथ मिट्टी में उपलब्ध फास्फोरस की उपलब्धता होने से 30 से 40 प्रतिशत फास्फेटिक उर्वरक की बचत की जा सकती है ।
फॉस्फोरस सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया का प्रयोग करने की विधि :
भूमि की स्थिति और फसल की जरूरत को देखते हुए 5-8 किलोग्राम फास्फेटिका पाउडर को 50 किलोग्राम गोबर की खाद या वर्मिकामपोस्त में मिलाकर प्रति एकड़ इस्तेमाल करें | फास्फेटिका तरल को 1 से 2 किलोग्राम को प्रति एकड़ फसल की किस्म एंव भूमि की हालत के अनुसार ईस्तेमाल कर सकते हैं । प्रयोग से पहले इसको पानी में अच्छी तरह घोलें । इसको सिंचाई के पानी में अथवा 100 किलोग्राम गोबर खाद में मिलाकर ईस्तेमाल कर सकते हैं ।
पोटास सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया
पोटास सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया मिट्टी में अघुलनशील पोटाश को घुलनशील में बदल देता है (अकार्बनिक पोटेशियम को कार्बनिक में परिवर्तित करता है) और मिट्टी में कोलाइड्स व पोटेशियम और सिलिका अणुओं के बीच के बंधन को तोड़कर पौधे की जड़ क्षेत्र प्रणाली को पोटेशियम उर्वरक उपलब्ध कराता है | पोटास सॉल्यूबिलाईजिंग बैक्टीरिया जैविक रूप से सक्रिय मेटाबोलाइट्स का उत्पादन और जमा करता है, जो कीट प्रतिरोधी और पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देता है और पोटाश को जुटाता है जिसे बाद में पौधों द्वारा ग्रहण किया जाता है।
पोटाश सभी पौधों के लिए एक प्रमुख पोषक तत्व है और यह पूरे पौधे के जीवन चक्र में विशेष रूप से फल सेट और फल विकास के दौरान आवश्यक है।
पोटाश मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया बायो फर्टिलाइजर (सीएफयू: 2 x 109 सेल / एमएल)
पोटाश फूलों और फलों को उत्तेजित करता है। यह एंजाइमों को सक्रिय करता है, सेल टर्गर को बनाए रखता है, प्रकाश संश्लेषण को बढ़ाता है, श्वसन को कम करता है, चीनी और स्टार्च के परिवहन में मदद करता है। पोटाश न केवल पौधों के चयापचय में सुधार करता है, यह पुआल को मजबूत करके, अनाज भरने, कर्नेल वजन में सुधार, रोग प्रतिरोध में वृद्धि और तनाव या प्रतिकूल स्थिति में खड़े होने से फसल की गुणवत्ता में सुधार करता है।
पोटाश मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया के लाभ:-
- पोटाश मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया के प्रयोग से उर्वरक की लागत लगभग 50-60% कम हो जाती है
- पीएच और अस्थायी की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए उपयुक्त।
- जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। सभी फसलों के लिए उपयुक्त।
- फसलों की वृद्धि और उपज में 20-30% की वृद्धि
- इसके अवशिष्ट प्रभावों के कारण अगली फसल को भी लाभ होता है।
प्रयोग करने की विधि:-
मृदा अनुप्रयोग: 2-3 किग्रा पोटाश मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया को 50 किग्रा मिट्टी/FYM/वर्मी कम्पोस्ट में मिलाएं। नमी बनाए रखने व छायाधार पर रखे। बुवाई के समय एक एकड़ में प्रसारित करें।
नोट:- पोटाश मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया को किसी अन्य जैव उर्वरक के साथ मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है।
जिंक मोबिलाइजिंग बैक्टीरिया बायो फर्टिलाइजर
जिंक मल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया के उग्र उपभेद होते हैं जो मिट्टी में मोजूद जिंक को घुलनशील कर सकते हैं और कार्बनिक एसिड के स्राव के माध्यम से अघुलनशील रूप में परिवर्तित हो सकते हैं। जिंक मल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया पौधे को जिंक की उपलब्धता में मदद करता है।
जिंक मल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया लाभ:-
- जिंक नाइट्रोजन चयापचय के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
- यह कुछ अमीनो एसिड के सक्रियण से जुड़ा हुआ है।
- जिंक स्टार्च निर्माण से संबंधित है।
- संक्रमण तत्वों में से एक, जिंक कुछ एंजाइम कार्यों को नियंत्रित करता है।
- मिट्टी की माइक्रोबियल गतिविधि को बढ़ाता है।
जिंक मल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया के उपयोग की प्रक्रिया:
मिट्टी में प्रयोग: 500-600 ग्राम जिंक मिश्रण 50 किलो गोबर की खाद को 08 से 10 दिनों तक नमी के साथ छायाधार स्थान पर रखें | यह सामग्री बुवाई के समय बेड में प्रति एकड़ मिक्स कर दे ।
स्प्रे- जिंक मल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया के 700-1000 मिली लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में स्प्रे करें।
माइकोराइजा
माइकोराइजा एक सूक्ष्मदर्शी जीव है। यह पौधों की जड़ों एवं कवक के बीच सहजीवी रूप से रहता है। यह पौधों को महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को ग्रहण करने में सहायक है। इसका प्रयोग जैविक उर्वरक के तौर पर भी किया जाता है। फसलों के साथ मिट्टी के लिए भी बहुत लाभदायक है। माइकोराइजा जो न केवल पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देता है बल्कि पौधों को जड़ों और मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से भी बचाता है। मैक्स बायो प्रो सहजीवी संघ बनाता है जो पानी और पोषक तत्वों के परिवहन को बढ़ाता है विशेष रूप से फॉस्फोरस और जिससे कई फसलों की वृद्धि और उपज में वृद्धि होती है। मैक्स बायो प्रो कुछ कवकनाशी हार्मोन को स्रावित करके रूट रोगजनक नेमाटोड को भी दबा देता है। (अर्थात् भींगना, वापस मरना, म्यान झुलसा, तना सड़न, वसीयत आदि जैसे रोग)
“माइकोर” का शाब्दिक अर्थ है “कवक” और राइज़ा का अर्थ है “जड़”। यह पौधों और जड़ कवक के बीच पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंध को परिभाषित करता है। मिट्टी में माइकोरिज़ल कवक तंतु स्वयं जड़ों के विस्तार हैं। लाभकारी माइकोरिज़ल कवक के साथ सहजीवी संबंध से 90 प्रतिशत से अधिक पौधों की प्रजातियां।
माइकोराइजा के सतह अवशोषित क्षेत्र को 100 से 1,000 गुना तक बढ़ा देता है, जिससे मिट्टी के संसाधन तक पहुंचने के लिए पौधे की क्षमता में काफी सुधार होता है। मैक्स बायो प्रो न केवल जड़ों की सतह को अवशोषित करने वाले क्षेत्र को बढ़ाकर पोषक तत्वों को बढ़ाता है, बल्कि मिट्टी में शक्तिशाली एंजाइमों को भी छोड़ता है, जैसे कि कार्बनिक नाइट्रोजन, फास्फोरस, लोहा और अन्य “कसकर बाध्य” मिट्टी पोषक तत्व।
नील हरित शैवाल
नील हरित शैवाल जलीय पौधों का एक विशेष समूह होता है। इसे साइनो बैक्टीरिया भी कहा जाता है। यह एक कोशिकीय जीवाणु है और शैवाल के आकार का होता है, इसलिए इसे नील हरित शैवाल भी कहते हैं। इस जीवाणु को धान की फसल के लिए वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को भूमि में संस्थापित कराने के उद्देश्य से उपयोग में लाया जाता है। नील हरित शैवाल प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा ग्रहण करके वायुमंडलीय नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण करता है। यह एक स्वतंत्र रूप से जीवनयापन करने वाला जीवाणु होता है, धान के खेत में चूंकि सदैव पानी भरा रहता है, इसलिए नील हरित शैवाल की वृद्धि एवं विकास के लिए अनुकूल स्थितियां विद्यमान रहती हैं। नील हरित शैवाल से मृदा में कार्बनिक पदार्थों तथा अन्य पौध विकासवर्द्धक रसायनों जैसे-ऑक्सीन, जिब्रेलीन, फाइरीडोक्सीन, इंडोल एसिटिक एसिड इत्यादि की मात्रा में वद्धि हो जाती है। इससे फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। इस शैवाल से अम्लीय और क्षारीय-भूमि का सुधार होता है। ”
नील हरित शैवाल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण कर, धान की फसल को आंशिक मात्रा में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। यह जैविक खाद नाइट्रोजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है। यह धान की फसल को न सिर्फ नाइट्रोजन की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित शैवाल के अवशेष से बनी खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होता है। नील हरित शैवाल की प्रजातियां नॉस्टाक, एनाबीना, कैलोथ्रिक्स, साइटोमा, टोलिपोथ्रिक्स आदि हैं।
नील हरित शैवाल के उपयोग से लाभ:-
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- नील हरित शैवाल एक जैविक खाद है, जिसे किसान आसानी से तैयार कर सकते हैं।
- यह धान की फसल को लगभग 25 से 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नाइट्रोजन की पूर्ति करता है।
- इसके द्वारा कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ स्रावित होते हैं, जिनसे बीजों का अंकुरण और फसलों में वृद्धि होती है।
- इस शैवाल के उपयोग का लाभ आगामी फसल पर भी होता है।
- धान के खेत में नील हरित शैवाल की सिर्फ 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है, जिसे पूरे खेत में छिड़ककर बिखेर देना चाहिए।
- खेत में जलीय कीट लगने पर आवश्यक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। इनका प्रतिकूल प्रभाव नील हरित शैवाल के वृद्धि में नहीं होता।
- हरे रेशेदार स्थानीय शैवाल दिखने पर नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) का 0.05 प्रतिशत घोल (1 ग्राम एक लीटर पानी में) का छिड़काव किया जाये। इसे समय-समय पर छिड़कें।
- खेत में लगातार 3 से 4 वर्षों तक इस जैविक खाद का उपयोग होता रहे। इससे आने वाले वर्षों में इस शैवाल के पुर्नउपचार की आवश्यकता नहीं होती। इसके साथ ही उस भूमि की उर्वरता बनी रहती है।
- जिस खेत में नील हरित शैवाल का उपचार किया गया हो उसमें अगले सीजन में कोई भी फसल (विशेषकर चना) लेना अत्यंत लाभप्रद पाया गया है।
धान के खेत में नील हरित शैवाल का उपचार
धान के ब्यासी अथवा रोपा वाले खेत में धान के पौधों को रोपने के 6 से 10 दिनों के भीतर, नील हरित शैवाल के 10 कि.ग्रा. सूखे पाउडर को पूरे खेत में छिड़ककर उपचारित कर दिया जाता है। नील हरित शैवाल से उपचारित करने के पूर्व उस खेत में लगभग 8 से 10 सें.मी. पानी ही रखें और 20 दिनों तक इसे खेत में कायम रखें। इससे नील हरित शैवाल की बढ़ोतरी और फैलाव ठीक तरह से होता है। शैवाल की यही बढ़ोतरी और फैलाव वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करने में सहायक होता है। नील हरित शैवाल से उपचार में निम्नलिखित बातों का अवश्य ध्यान देना चाहिये:
- खेत सूखने न पाये, इसके लिये खेत के मेड़ों में से चूहे के बिल आदि छेदों को बंद कर दें।
- खेत तैयार करने के समय ही फॉस्फोरस की पूरी मात्रा डाल दें। इसकी उपस्थिति, नील हरित शैवाल की वृद्धि के लिये आवश्यक होती है।
सावधानियां: जैव उर्वरक को कीटनाशकों, कवकनाशी, खरपतवारनाशी या किसी सल्फर उत्पाद के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए।
वर्मी कंपोस्ट बनाने व खेत में उपयोग करने से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें।
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