यह सच है कि बिना कीटनाशक कृषि करना आज के समय में संभव नहीं है, और रसायनिक कीटनाशकों के प्राइस जिस ढंग से पढ़ रहे हैं जिसके कारण एक छोटे किसान के लिए इन्हें खरीदना बहुत मुश्किल हो गए हैं | लेकिन कुछ जैविक कीटनाशक ऐसे भी हैं जो किसान अपने घर की सामग्री से ही बना सकते हैं और यह कीटनाशक बहुत प्रभावी भी है | अगर किसान हर 5 से 7 दिन के अंतराल के बाद यह कीटनाशक अपनी फसल पर उपयोग करता है तो किसान को रसायनिक कीटनाशक खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी और ना ही उसके खेत में कोई बीमारियां आएंगी | आइए समझें कीटनाशक कौन-कौन से हैं:-
गौ-मूत्र :
गौमूत्र, कांच की शीशी में भरकर धूप में रख सकते हैं। जितना पुराना गौमूत्र होगा
उतना अधिक असरकारी होगा। 12-15 मि.मी. गौमूत्र प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेयर पंप से
फसलों में बुआई के15 दिन बाद, प्रत्येक 10 दिवस में छिड़काव करने से फसलों में रोग एवं
कीड़ों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित नहीं होती है जिससे प्रकोप की संभावना कम रहती है। गौमूत्र कीटनाशक बनाने से संबंधित अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
नीम पत्ती का घोल :
नीम की 10-12 किलो पत्तियॉ को 200 लीटर पानी में 4 दिन तक भिगोंयें। पानी हरा पीला होने पर इसे छानकर, एक एकड़ की फसल पर छिड़काव करने से इल्ली की रोकथाम होती है। इस औषधि की तीव्रता को बढ़ाने हेतु इसमें बेसरम, धतूरा, तम्बाकू आदि के पत्तों को मिलाकर काड़ा बनाने से औषधि की तीव्रता बढ़ जाती हैऔर यह दवा कई प्रकार के कीड़ों को नष्ट कर सकती है ।
नीम की निबोली:
नीम की निबोली 2 किलो लेकर महीन पीस लें | इसमें 2 लीटर ताजा गौ मूत्र मिला लें। इसमें 10 किलो छांछ मिलाकर 4 दिन रखें और 200 लीटर पानी मिलाकर खेतों में फसल पर छिड़काव करें।
नीम की निंबोली से कीटनाशक बनाने से संबंधित अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
नीम की खली :
नीम की खली के उपयोग से मिट्टी में दीमक तथा व्हाइट ग्रब एवं अन्य कीटों की इल्लियॉ तथा प्यूपा को नष्ट करने तथा भूमि जनित रोग के रोकथाम के लिये किया जा सकता है। 6-8
क्विंटल प्रति एकड़ की दर से अंतिम बखरनी करते समय नीम की खली को खेत में मिलावें।
मटठा:
मट्ठा, छाछ, मही आदि नाम से जाना जाने वाला तत्व मनुष्य को अनेक प्रकार से गुणकारी है और इसका उपयोग फसलों मे कीट व्याधि केउपचार के लिये भी लाभधायक हैं। मिर्ची, टमाटर आदि जिन फसलों में चुर्रामुर्रा या कुकड़ा रोग आता है, उसके रोकथाम हेतु एक मटके में छाछ डाकर उसका मुॅह पोलीथिन से बांध दे एवं 30-45 दिन तक उसे मिट्टी में गाड़ दें। इसके पश्चात् छिड़काव करने से कीट एवं रोगों से बचत होती। 100-150 मि.ली. छाछ को 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से कीट-व्याधि का नियंत्रण होता है। यह उपचार सस्ता, सुलभ, लाभकारी होने से कृषकों मे लोकप्रिय है।
मिर्च/लहसुन :
आधा किलो हरी मिर्च, आधा किलो लहसुन पीसकर चटनी बनाकर पानी में घोल बनायें | इसे छानकर 100 लीटर पानी में घोलकर, फसल पर छिड़काव करें। 100 ग्राम साबुन पावडर भी मिलावे। जिससे पौधों पर घोल चिपक सके। इसके छिड़काव करने से कीटों का नियंत्रण होता है।
लकड़ी की राख:
1 किलो राख में 10 मि.ली. मिट्टी का तेल डालकर पाउडर का छिड़काव 25 किलो प्रति हेक्टर की दर से करने पर एफिड्स एवंपंपकिन बीटल का नियंत्रण हो जाता है।
जैविक कीटनाशक का फसलों पर स्प्रे करने के क्या-क्या फायदे है:-
- जैविक कीटनाशक स्प्रे से फसलों के कीट नष्ट हो जाते हैं या खेत से भाग जाते हैं |
- आर्गेनिक कीटनाशक बढ़िया कीटनाशक तो है ही साथ में इसके अंदर पौधे के लिए मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व् अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं जो पौधे की बढ़वार के लिए बहुत ही फायदेमंद है |
- नीम ऑयल बनाना और या खरीदना दोनों ही बहुत महंगा है लेकिन नीम की निंबोलीयों से बना कीटनाशक नीम ऑयल से भी ज्यादा प्रभावी है |
- जैविक कीटनाशक सबसे सस्ता और प्रभावी कीटनाशक है |
- इसके प्रयोग से मनुष्य व् पशु पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता है |
- फसलों पर स्प्रे करने के पश्चात यह लगभग है 5 से 8 दिन तक इसका प्रभाव रहते हैं |
जैविक कीटनाशक बनाते समय क्या क्या सावधानी रखें: –
- गोबर और गोमूत्र देसी गाय का होना चाहिए |
- बर्तन को सदैव छाया में रखना चाहिए |
- जैविक कीटनाशक बनाते समय बर्तन केवल मिट्टी या प्लास्टिक का होना चाहिए | धातु के बर्तन में कीटनाशक क्रियाशील हो जाता है |
- बर्तन को एयरटाइट नहीं करना |
- कीटनाशक को 5 से 7 दिन के अंदर खेत में इस्तेमाल कर लेना चाहिए |
- कीटनाशक के उपयोग से पहले खेत में नमी होनी चाहिये |
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https://www.nhb.gov.in/
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