जीवामृत क्या है ? जीव-अमृत -श्री सुभाष पालेकर जी

जीवामृत क्या है: एक एकड़ जमीन के लिए दस किलो गोबर के साथ गौमूत्र , गुड़ और दो तरह की दालों के बीजों का आटा ( बेसन ) आदि मिला कर प्रयोग में लाकर परिणाम चमत्कारी निकलते हैं । जीव-अमृत या जीवामृत तैयार करने के लिए सारी उन्हीं विधियों का ही प्रयोग किया गया जो जंगल में लगे उस फलदार वृक्ष के नीचे कुदरत प्रयोग करती है ।

जीव- अमृत (जीवामृत) बनाने के लिए देसी गाय का गोबर तथा मूत्र चाहिए। विदेशी जर्सी गाय वास्तव में गाय है ही नहीं । यह कोई दूसरा ही प्राणी है , क्योंकि इसमें गाय वाला एक भी गुण नहीं है [जीवामृत क्या है]


किसान भाइयों यह अध्याय श्री सुभाष पालेकर जी की किताब कुदरती खेती कैसे करें से लिया गया है अगर आपको कहीं से यह किताब खरीदने का मौका मिलता है या प्राप्त होती है तो अवश्य ही प्राप्त करें यह किताब किसानों के लिए वरदान से कम नहीं है

पालेकर जी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए । पहला यह कि यदि देसी गाय का गोबर तथा मूत्र ज़रूरत अनुसार उपलब्ध हो तो वह सब से उत्तम है । यदि यह ज़रूरत अनुसार उपलब्ध न हो तो आधा देसी गाय का तथा आधा देसी बैल या भैंस का गोबर भी लिया जा सकता है|

परन्तु अकेला देसी बैल तथा भैंस का नहीं । दूसरा तथ्य यह सामने आया कि जो देसी गाए ज्यादा दूध देती है गोबर तथा मूत्र कम प्रभावी है और जो गाय कम दूध देती है । गोबर तथा मूत्र ज़्यादा प्रभावी है [जीवामृत क्या है]

जीवामृत क्या है

जीवामृत खाद बनाने की विधि

1

देसी गाय का गोबर

10 किलो

2

देसी गाय का मूत्र

5-10 लीटर

3

वेसन

1.2 KG

4

गुड़

1.2 KG

5

बन्ने की मिट्टी

एक मुट्ठी

6

पानी

200 लीटर

इस घोल को 2 से 7 दिनों तक छाया में रखना है । दिन में दो बार ( सवेरे तथा शाम ) लकड़ी के साथ हिला देना है ।

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जीवामृत को खेत में कैसे प्रयोग करें ? ( जीव-अमृत)

जब खेत को पानी लगाया जा रहा हो तब जीव-अमृत की टंकी में से जीव-अमृत (जीवामृत), इस पानी में मिलाया जा सकता है । अमृत-जीव (जीवामृत) पानी में मिलकर पौधों की जड़ों तक पहुँच जाएगा । फलदार या दूसरे – पेड़ो को जीव-अमृत देने को 2-5 लीटर प्रति पौधा देना है ।

जीवामृत डालने के लिए भूमि में नमी होना आवश्यक है| यदि आपके पास ड्रम या सीमेंट की टैंकी नहीं है तो खरीदने की ज़रूरत नहीं है । जिस जगह से खेत को पानी जा रहा है उस जगह के साथ ही 500 लीटर क्षमता वाला एक गड्ढा खोद लो ।

उसकी मिट्टी बाहर निकाल कर उस गड्ढे को भीतर से ईंटों या पत्थरों की अच्छी तरह तह बनाने के बाद मिट्टी और गोबर के साथ अच्छी तरह लेप लो । सूखने के बाद यह गड्ढा जीव – अमृत बनाने के लिए तैयार है । यदि मिट्टी भारी है तो भीतर एक पलास्टिक सीट बिछाई जा सकती है ।

उसके किनारों पर ईंटें या पत्थर रखे जा सकते हैं । जब भी खेत में पानी करना हो उसमें गड्ढे से जीव-अमृत 1-1 डब्बे से डालते रहें [जीवामृत क्या है]

जीवामृत क्या है

खेत में गोबर खाद कितनी डालनी चाहिए ?

श्री सुभाष पालेकर जी ने देखा कई किसान पिछले कई सालों से दूसरे किसानों से या फिर शहरों से ट्रालियां खरीद कर प्रति एकड़ 15-50 बैल- गाड़ियाँ खाद की डालते आ रहे हैं । ऐसा केवल बड़े किसान ही कर सकते हैं । छोटा किसान गोबर खाद नहीं खरीद सकता । उसकी आर्थिक स्थिति उसे आज्ञा नहीं देती ।

किसानों के दिमाग में यह बात घर कर चुकी है कि यदि कुदरती खेती करनी है तो गोबर खाद ज़्यादा मात्रा में ही डालनी पड़ेगी । इसका परिणाम बिल्कुल उल्टा हुआ है । जो छोटे और मध्य – वर्गीय किसान हैं , जो हर साल गोबर खाद नहीं खरीद सकते उन्होंने ज्यादा से ज़्यादा मात्रा में रासायनिक खादें डालनी शुरू कर दी ।

इस कारण भूमि बंजर बनती गई तथा पैदावार हर साल कम होने लगी है | इन ढंगों का इस्तेमाल करके फसलें लेने और उपज बढ़ाने के लिए न तो रासायनिक खादों को डालने की जरूरत है तथा न ही गोबर खाद खरीद कर डालने की । 

पालेकर जी   की लगातार छ : साल की खोजों के पता चला कि यदि आपके पास 15-30 एकड़ भूमि है तो आपके पास केवल एक देसी गाय और एक बैल का होना काफी है ।

पालेकर जी हर मौसम की सभी फसलों के ऊपर अलग-अलग मात्रा में गोबर खाद डालकर प्रयोग किया है एक बैलगाड़ी से लेकर 500 किलो छानी हुई खाद् डालकर प्रयोग किया है | वो देखना चाहता थे की प्रति एकड़ में कम से कम कितनी गोबर खाद की जरूरत है |

श्री सुभाष पालेकर जी के प्रयोग से पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि जिस प्रकार रसायनिक खादे फसलों के पूरी तरह की पूरी खुराक नहीं है उसी प्रकार गोबर की खाद भी फसल का खुराक नहीं है यदि ज़रूरी ही डालनी हो तो जीवाणु समूह ( कल्चर ) के रूप में सिर्फ जाग लाने के तौर पर प्रति एकड़ प्रति फसल 100 किलो गोबर खाद बहुत से ज़्यादा डालने की कोई ज़रूरत नहीं है ।

यदि आपके पास एक देसी गाय और दो बैल हैं तो आप उनके गोबर खाद से इस ढंग से 15 एकड़ भूमि में अच्छी-खासी फसल ले सकते हैं ।

न तो कोई रासायनिक खाद डालने की जरूरत है और न ही खरीद कर ट्रालियाँ भर – भर कर गोबर खाद डालने की ज़रूरत केवल अपनी तैयार की हुई गोबर खाद को बाहर निकाल कर छाया में रख कर 7 दिनों तक सुखा लो । यदि ढेले बने हों तो उन्हें तोड़ कर छाननी से छान लो ।

बोरियों में भर कर छाया में रख लो । बीज बीजने के साथ – साथ बीज के साथ ही प्रति एकड़ , सौ किलो खाद बीजाई करते हुए बीजाई यंत्र से ही डालो |

रसायनिक खाद या खरीदी ही गोबर खाद जाने की कोई जरूरत नहीं है इस ढंग से आपको उतनी ही पैदावार मिलेगी जितने आप रासायनिक खेती से लेते हैं [जीवामृत क्या है]।| 

एक बात का ध्यान रखना जरूरी है देसी गाय का गोबर खाद नहीं है । यह एक जाग कल्चर है । जिस प्रकार सौ लीटर दूध का दही जमाने के लिए दही का एक चम्मच ही जाग कल्चर के रूप में काफी होता है उसी तरह ही प्रति के लिए गाय के 10 किलो गोबर की जरूरत होती है । 

100 किलो छानी हुई गोबर खाद भी यही कार्य करती है । आप इस गोबर खाद में थोड़ा जीव- अमृत (जीवामृत) मिला कर गाढ़े रूप में भी बीजाई के साथ ही डाल सकते हैं ।


गाढ़ा जीवामृत (जीव-अमृत)

जीव-अमृत आप दूसरे ढंग से भी डाल सकते हैं । गीला- गाढ़ा जीव- अमृत बना कर भी प्रयोग में लाया जा सकता है । इसके लिए क्या करना है ? देसी गाय के 100 किलो गोबर ( या आधा – आधा मिला हुआ बैल या भैंस का गोबर ) में 2 किलो गुड़ तथा 2 किलो वेसन या किसी दूसरी दाल का आटा मिला दो ।

खेतों के किनारों की मिट्टी मुट्ठी भर उसमें डालनी है । थोड़ा – थोड़ा गौ – मूत्र डाल कर उसे अच्छी प्रकार मिश्रित कर देना है । उसे अच्छी प्रकार गूंथ लेना है । इस प्रकार यह एक सीरे जैसा गाढ़ा जीव- अमृत बन जाएगा । इसे इतना सा गाढ़ा बनाना है ताकि इसके लड्डू जैसे बन जाएँ ।

एक-एक लड्डू ड्रियर के नीचे रख कर उन्हें सूखी घास से ढक दो । इस घास के ऊपर ड्रियर से पानी पड़ने दो । यह गाढ़ा जीव- अमृत आप पेड़ – पौधों के समीप रख सकते हैं ताकि जीव – अमृत जड़ों तक पहुँच सके । गीले या सूखे जीव-अमृत में आप बीज रखकर बीज सकते हैं [जीवामृत क्या है]

जीवामृत क्या है

सूखा गाढ़ा जीवामृत (जीव–अमृत)

इस गीले गाढ़े जीव-अमृत को छाया में फैला कर सुखा लो । सूखने के बाद लकड़ी के साथ कूट कर बारीक करके बोरियों में भर लो तथा छाया में रख दो । यह गाढ़ा जीव- अमृत सुखा कर छ : महीने के लिए जमा किया जा सकता है । सूखने के बाद गाढ़े जीव अमृत में रहने वाले सूक्ष्म जीव समाधि की स्थिति में खोल धारण कर लेते हैं ।

जब आप इस सूखे गाढ़े जीव-अमृत को भूमि में डालते हैं तो नमी मिल ही सह सूक्ष्म जीव अपना खोल तोड़ कर समाधि भंग करके क्रियासील  होकर अपना कार्य करने लग पड़ते हैं । जिन किसानों के पास गोबार ज्यादा हो वे किसान फालतू गोबर को सुखा कर गाढ़ा जीव- अमृत बना कर सिंचत फसलों में गोबर खाद मिलाकर उपयोग में ला सकते हैं ।

बहुत बढ़िया चमत्कारी परिणाम सामने आते हैं । किसी भी फसल की बीजाई के समय प्रति एकड़ 100 किलो छानी हुई गोबर खाद ( Farm Yard Menure) तथा 10 से 100 किलो सूखा गाढा जीव – अमृत बीज के साथ ही बीज के सामने डालना है । बहुत ही चमत्कारी परिणाम निकलते हैं ।

मैंने यही प्रयोग हर फसल के लिए तथा हरेक फलदार पौधों के लिए करके देखा है । चमत्कारी परिणाम निकले हैं । इस तरह से आप रासायनिक खेती से भी ज्यादा उपज ले सकते हैं [जीवामृत क्या है]।।


जीवामृत का फसलो पर छिड़काव

श्री सुभाष पालेकर जी ने जीव-अमृत को भूमि में डालने के साथ-साथ उसका हर फसल के ऊपर और फलदार वृक्षों पर छिड़काव करने के अनेक प्रयोग भी किए हैं । ऐसा करने पर निकलने वाले परिणामों का निरीक्षण किया है । उन्होंने जीव- अमृत की भिन्न – भिन्न मात्रा लेकर प्रयोग किये हैं [जीवामृत क्या है]।।

जीवामृत को हरेक नक्षत्र में हरेक नक्षत्र के हरेक चरण में छिड़काव के नतीजे भी देखे हैं , बड़े ही चमत्कारी परिणाम निकले हैं । उन्होंने जीव-अमृत को हरेक फसल के ऊपर छिड़काव करके देखा है ।

उदाहरण के तौर पर – गन्ना , केला , जीरी , गेहूँ , ज्वार , मकई , अरहर , मूंगी , माह ( उड़द ) , छोले ( चना ) सूरजमुखी , सरसों , बाजरा , मिर्च , प्याज , हल्दी , फूल – पौधे , बैंगन , टमाटर , गन्ना , केला , , आलू , हरी सब्जियां , गवारा , लहसुन , दवा – पौधे आदि फसलों के ऊपर छिड़काव की विधि इस तरह है ।

आप महीने में कम से कम एक बार या दो – तीन बार जीव – अमृत का छिड़काव करें ।

  • बीज बीजने से 15 दिन बाद प्रति एकड़ में 5 लीटर जीव-अमृत कपड़े से छान कर 100 लीटर पानी डाल कर छिड़काव करना है । यह 5 % घोल है |
  • बीज बीजने के एक महीने बाद भी ऊपर लिखित विधि से छिड़काव करना है ।
  • बीजाई से 45 दिनों के बाद 10 लीटर जीव-अमृत 150 लीटर पानी में । यह 5 प्रतिशत घोल है [जीवामृत क्या है]
जीवामृत क्या है

जीवामृत को खेत में उपयोग

  • बीजाई से दो महीने बाद ( 60-90 दिनों के बीच ) 20 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर पानी में ।
  • बीजाई से अढ़ाई महीने बाद 20 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर पानी में । यह 10 प्रतिशत घोल है ।
  • बीजाई से तीन महीने बाद 20 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर पानी में ।
  • बीजाई से साढ़े तीन महीने बाद 25 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर पानी में ।
  • बीजाई से 2 महीने बाद 25 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर पानी में । यह 12 प्रतिशत घोल है
  • बीजाई से 4 महीने बाद 30 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर पानी में ।
  • बीजाई से 5 महीने बाद 30 लीटर जीव- अमृत 200 लीटर मानी में । यह 15 प्रतिशत घोल है

गन्ना, केला, पपीता के ऊपर जीव – अमृत का छिड़काव

इन फसलों के ऊपर पहले पाँच महीने ऊपर का छिड़काव करने के उपरान्त अन्तिम विधि से छिड़काव प्रत्येक 15 दिनों के बाद करते रहो [जीवामृत क्या है]।।


हर एक फलदार वृक्षों के ऊपर जीवामृत का छिड़काव

फलदार वृक्षों की कोई भी आयु हो उनके ऊपर महीने में एक बार ऊपर लिखित विधि अनुसार जीव – अमृत का छिड़काव करें । 20-30 लीटर जीव – अमृत को 200 लीटर पानी में डाल कर । फल पकने के दो महीने पहले फलदार पेड़ – पौधों के ऊपर 2 लीटर नारियल पानी 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना है ।

उसके 15 दिनों के पश्चात् 6 लीटर खट्टी लस्सी 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव छिड़काव हरेक फलदार वृक्षों के ऊपर जीव अमृत का करना है [जीवामृत क्या है]।।


जीव अमृत कैसे एक कल्चर ( जामन / जाग ) है ?

अब आप सोचने लगे होंगे कि यह जीव- अमृत इतना ही चमत्कारी परिणाम देने वाला है तो क्या यह जीव अमृत फसलों की जड़ों की खाद है ? मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि जीव- अमृत किसी भी फसल या पेड़- पौधों की खाद नहीं है । यह अनगिनत सूक्ष्म जीवों का महासागर है ।

ये सारे सूक्ष्म जीव भूमि में , जो खुराकी तत्व प्रयोग में लाने योग्य नहीं होते , उनको प्रयोग में लाने योग्य बना देते हैं । दूसरे शब्दों में ये सभी सूक्ष्म जीव खाना बनाने का काम करते हैं । इस लिए हम इन्हें पेड़ – पौधों के रसोइए ‘ भी कह सकते हैं ।

देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से लेकर 500 करोड़ जीवाणु होते हैं । जब हम जीव-अमृत बनाते समय 200 लीटर पानी में 10 किलो गोबर मिलाते हैं तो 30 लाख करोड़ जीवाणु उसमें डाल देते हैं । जीव-अमृत बनाने के समय हर 20 मिन्टों में , इनकी गिनती अनगिनत हो जाती है [जीवामृत क्या है]।।

जब हम जीव- अमृत को भूमि में डाल देते हैं तो वे पेड़-पौधों की खुराक तैयार करने में जुट जाते हैं । भूमि में जाते ही जीव- अमृत एक और काम करता है । धरती के भीतर 10 – 15 फुट तक जाकर यह समाधि की स्थिति में बैठे हुए कैंचुओं तथा दूसरे जीव – जन्तुओं को ऊपर की तरफ खींच कर उन्हें कार्यशील कर देता है ।

वे अपनी समाधि को तोड़कर कार्य में जुट जाते है | इसे समझने के लिए आप एक काम करो । आप  जब भी सवेरे – सवेरे खेत में जाओ तो रास्ते में पड़े 1-2 दिन के पुराने गाय के गोबर को उठाकर देखो । गोबर उठाते ही आपको गोबर में कुछ छिद्र दिखाई देंगे । ये छिद्र किसने किए है ?

जीवामृत क्या है

वह कौन है जो इन छिद्र भीतर से ऊपर की सतह पर आया है मैने ऐले 2500 छिद्रों को गहरा खोद कर देखा है । पालेकर जी ने यह प्रयोग हर तरह की मिट्टी पर किया है और पाया कि इन छिद्रों में से दो तरह के जीव ऊपर आए ।

पहला, गोबर से गेंद की तरह गोला बनाकर उसको आगे से आगे ले जाने वाला गोबर- कीड़ा तथा दूसर जीव जिसे हम उसे कैंचुए कहते है । इस का अर्थ है कि देसी गाय का गोबर धरती के ऊपर गिरते ही भूमि के अंदर समाधि में बैठे कैंचुए अपनी समाधि तोड़ कर तेजी से ऊपर आते हैं तथा फिर दिन-रात कार्य करने में जुट जाते हैं ।

इसका यह मतलब हुआ कि देसी गाय के गोबर में एक ऐसी अद्भुत आकर्षित शक्ति है जो कैंचुओं तथा कई दूसरे अनगिनत जीव-जन्तुओ को खींच कर बाहर ले आती है तथा दिन-रात इन्हें काम में लीन कार देती है [जीवामृत क्या है]।।

इसका मतलब यह हुआ कि गोबर खाद पेड-पौधों को खाद तौर पर नहीं चाहिए । केवल जाग , जामन या कल्वर के रूप में ही चाहिए ।


जीवामृत क्या है : लोगो के द्वारा पुछे जाने वाले प्रश्न

जीवामृत के क्या फायदे हैं?

जीवामृत का उपयोग पौधों के पोषण में मदद करता है और मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है

जीवामृत खेत में कैसे उपयोग किया जाता है?

जीवामृत को पौधा संवरण के रूप में या पौधों की पोषण के लिए खेत में छिड़ककर उपयोग किया जा सकता है.

जीवामृत में कौन कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं?

जीवामृत में नाइट्रोजन, पोटैशियम, फॉस्फेट, और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं.

कृषि में जीवामृत क्या है?

षि में जीवामृत एक प्राकृतिक खाद है जो मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है और पौधों के स्वस्थ विकास को प्रोत्साहित करती है.

बीज अमृत क्या है?

बीज अमृत जीवामृत का एक प्रकार होता है जो बीजों के पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जाता है।

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