बारहमासी नींबू की खेती

बारहमासी नींबू की खेती: नीम्बू हमारे दैनिक भोजन में उपयोग लिया जाने वाला एक महत्वपूर्ण फल है। इसमें विटामिन-ए, बी, सी एवं खनीज तत्व जैसे फॉस्फोरस, कैल्शियम आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। विटामिन ‘सी’ एन्टीऑक्सीडेन्ट का कार्य करता है जो हमारे शरीर की विभिन्न बिमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में लाभदायक है।

इसकी खेती राजस्थान , उतर प्रदेस, हरियाणा , और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में  सफलता पूर्वक की जा रही है। उद्यान निदेशालय राजस्थान सरकार जयपुर के अनुसार वर्ष 2015-16 में राजस्थान में निम्बू के अन्तर्गत 3850 हैक्टेयर क्षेत्रफल, इसका उत्पादन 41350 मैट्रीक टन एवं उत्पादकता 10.74 मैट्रीक टन प्रति हैक्टेयर रही है।

राजस्थान में निम्बू की मांग एवं यहां की जलवायु स्थिति को ध्यान में रखते हुए इसके क्षेत्रफल को बढ़ाने की प्रबल सम्भावना है। नीम्बू का बाग लगाना एक लम्बी अवधि का निवेश है अतः किसान भाई नीम्बू का बाग लगाने हेतु बागवानी विशेषज्ञ की सलाहनुसार उन्नत वैज्ञानिक विधियों को अपनाते हुए अधिक लाभ कमा सकते हैं [बारहमासी नींबू की खेती]।



बारहमासी नींबू की खेती ke liye मिट्टी की जाँच: –

नीम्बू का बाग लगाने से पूर्व मिट्टी की जांच करवाना अति आवश्यक है क्योंकि पौधों की वृद्धि पर भूमि की दशाओं का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है अतः निम्न तरीके द्वारा मिटटी का नमूना लेना चाहिए ।

मिट्टी के नमूने उपरी सतह से 15 सेमी., 15 से 30 सेमी., 30 से 60 सेमी. 60 से 90 सेमी., 90 से 120 सेमी., 120 से 150 सेमी 150 से 200 सेमी. की तह से ” लें ।

ध्यान रखें एक स्थान से लिये गए इन सातों नमूनों ( 500 ग्राम मिटटी) को अलग-अलग साफ पोलीथीन की लिये गए इन सातों नमूनों (500 ग्राम मिटटी) को अलग-अलग साफ पोलीथीन की थैलीयों में भरें एवं प्रत्येक थैली में नमूने की पहचान हेतु एक कार्ड अवश्य डालें।

नीम्बू के बाग हेतु मिटटी का पी.एच. मान – 7.5, ई.सी. 0.5 डेसी सायमन / मीटर, कैल्शियम – 10 कार्बोनेट 5 प्रतिशत तथा चूना प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए ।

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 बारहमासी नींबू की खेती जलवायु एवं भूमि:-

नीम्बू के लिए उष्ण (गर्म) तथा उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाला एवं तेज हवा रहित तथा हल्की नम जलवायु उपयुक्त रहती है। उचित जल निकास वाली उपजाऊ दोमट या बलुई दोमट मृदा जो से 2 2.5 मीटर गहरी हो

उन्नत किस्में :-

कागजी , बारहमासी नीबू , प्रमालिनी, विक्रम, चक्रधर, पी.के.एम-1 साई सर्बती सीडलैस नीम्बू, गंगानगर नीम्बू -1 आदि । उपयुक्त रहती है ।


बारहमासी नींबू की खेती पौध लगाना :-

नीम्बू के पौधे 6X6 की दूरी पर लगाने चाहिए। पौधे लगाने के लिए 1X1X1 मीटर आकार के गड्डे दो माह पूर्व अर्थात मई, जून के महीने में खोद लेने चाहिए। गढढों में 50-60 किलो गोबर की खाद तथा एक किलो सुपर फास्फेट एवं 50 से 100 ग्राम क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण गढढों की मिटटी में मिलाकर भर देना चाहिए। पौध लगाने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई-सितम्बर रहता है। जहां पानी की अच्छी सुविधा हो वहां इनको फरवरी में भी लगाया जा सकता है। ड्रिप सिस्टम पर बाग लगाने के लिए 6X6 मीटर की जगह

5X5 मीटर या 6X4 मीटर या 6X3 मीटर की दूरी पर पौधे लगाये जा सकते हैं ।

उर्वरक(kg)

1 वर्ष

2 वर्ष

3 वर्ष

4 वर्ष

5 वर्ष

5 वर्ष

6 वर्ष

गोबर खाद

20

40

60

80

100

110

110

सुपर फास्फेट

250 ग्राम

500 ग्राम

750 ग्राम

1 kg

1.250 kg

1.50 kg

1.60 kg

MOP

250 ग्राम

350 ग्राम

500 ग्राम

600 ग्राम

600 ग्राम

600 ग्राम

निट्रोजन

60 ग्राम

180 ग्राम

300 ग्राम

400 ग्राम

500 ग्राम

650 ग्राम

750 ग्राम

जिंक सल्फेट

35 ग्राम

70 ग्राम

100 ग्राम

150 ग्राम

250 ग्राम

250 ग्राम

250  ग्राम

गोबर की खाद+सुपर फास्फेटम्यूरेट आफ पोटाश-जनवरी से फरवरी के प्रथम सप्ताह तक देवें तथा नत्रजन 1/3 भाग फरवरी (फूल आने से पहले ) +1 /3 भाग अप्रैल में (फल या दाना लगने बाद) 1 / 3 भाग अगस्त में चौथे सप्ताह में प्रथम पांच साल तक देवें। पांच वर्ष के पौधों में नत्रजन 1/2 फरवरी में तथा 1/2 अप्रैल में देवें ।


सुक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग 

सुक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए जिंक सल्फेट 500 ग्राम कॉपर सल्फेट 300 ग्राम मैगनीशियम सल्फेट 200 ग्राम, मैगनीज सल्फेट 200 ग्राम, बोरीक एसिड 100 ग्राम, फैरस सल्फेट 200 ग्रामसाईट्रिक एसिड 100 ग्राम एवं 900. ग्राम चूना तथा 100 लीटर पानी लें तथा इन सभी का अलग-अलग घोल बनाकर तथा उपरोक्त क्रमानुसार मिलाकर अप्रैल व मई में या आवश्यकतानुसार छिडकाव करें ।


अतिरिक्त फ़सल

प्रारम्भ के तीन वर्षों तक बाग में कुष्माण्ड कुल की सब्जियों के अतिरिक्त सभी प्रकार की सब्जियाँ जैसे ग्वार, मटर, चौला, मिर्च, बैंगन, प्याज आदि ली जा सकती है। कपास, हरा चारा, गेहूँ को अन्तराशस्य फसल के रूप में लेना हानिकारक है।


 बारहमासी नींबू की देखभाल 

पौधों की प्रारम्भिक अवस्था में ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है। फलों को तोड़ने के उपरान्त ऐसी शाखायें जो जमीन से अधिक सम्पर्क में आ जाती हैं उनको काट दें। सभी रोगग्रस्त घनी एवं चढी हुई शाखाओं को काट देवें । कटाई उपरान्त बोर्डो मिश्रण (2:2:250) का छिड़काव अवश्य करें ।


बारहमासी नींबू के पौधा लगाने का सही समय

नीम्बू को बीज तथा वानस्पतिक दोनों ही तरीके से किया जाता है। बीज द्वारा पौध तैयार करने के लिए उन्हें जुलाई अगस्त या फरवरी में लगाते हैं। नींबू में वानस्पतिक प्रवर्धन जैसे बडिंग, गुटी आदि लगाने का उपयुक्त समय जुलाई का महीना है। बीज हमेशा स्वस्थ एवं पक्के फलों से लेना चाहिए। बीजों को फलों से निकालने के बाद उन्हे तुरन्त क्यारियों में लगा देना चाहिए। क्यारियों में बीज की दूरी 2.50 से 300 सेमी तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 8 से 10 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए। नीम्बू के बीज से तैयार पौधों के एक वर्ष पश्चात ही खेत में लगायें ।


सिंचाई:

गर्मियों में करीब 10-15 दिन के अन्तराल पर व सर्दियों में 25 से 30 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। बूंद-बूंद सिंचाई आधारित नीम्बू के बागों में सिफारिश की गई पानी की मात्रा एक दिन छोड़कर लगावें । समान्यतया नये लगाये गये बाग पौधे के तने से ड्रिपर्स की दूरी दोनों ओर से एक फुट की होनी चाहिए तथा ड्रिपर्स 4 लीटर प्रति घंटा का लगायें । इसी हिसाब से बढाते रहें तथा ड्रिपर्स भी बढायें। जब तक कि यह पौधे से एक मीटर की दरी हो जाये। पानी की मात्रा एक दिन छोड़कर एक दिन (लीटर) में


प्रमुख कीट: नीम्बू की तितली

प्रोढ तितली प्रायः सुबह के समय निकलती है यह कीट अप्रैल से मई तथा अगस्त से अक्टूबर माह में ज्यादा सक्रिय रहता है।
इसकी लटें प्रारम्भ में चिड़ियों के बीट की तरह दिखाई देती हैं। अण्डों से निकलने के तुरन्त बाद यह पत्तियों को खाने लगती हैं तथा नुकसान पहुंचाती है।

1. नियत्रण हेतु पेड़ों की संख्या अधिक नहीं हो तो लटों को पेड़ों से चुनकर मिटटी के तेल मिले पानी में डालकर मार देना चाहिए ।

2. मोनोक्रोटोफॉस (36 एस. एल) एक मिली या क्यूनालफॉस (25 ई.सी) 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिडकाव करें ।


लीफ माइनरसिट्स सिल्ला एवं रोड स्पाइडर माईट 

लीफ माइनर की लटें बहुत छोटी होती हैं तथा यह पतियों में सुरंग बनाती हैं जो टेडी मेढी होती हैं वर्षा ऋतु में इसका प्रकोप ज्यादा होता है। सिट्रस सिल्ला का आक्रमण नई पत्तियों तथा कोमल भागों में होता है। यह पतियों से रस चूसते हैं, जिसके कारण पतियां सिकुड़ जाती हैं। इस कीट का प्रकोप वर्षा एवं बसन्त ऋतु में ज्यादा होता है। रेड स्पाइडर माइट पतियों के उपरी सिरों से रस चूसती हैं। कभी-कभी बहुत ही नुकसान पहुंचाती है।

नियत्रंण हेतु मोनोक्रोटोफॉस (36 एस.एल) एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिडकाव करें। सिट्ससिल्ला के नियंत्रण हेतु नई पती आने पर छिडकाव करना अति आवश्यक है ।


रस चूसक कीड़े (सफेद मक्खीथ्रिप्सचेपास्केल्स ) 

ये कीट पत्तियों, फूलों एवं पौधे के कोमल भागों से रस चूसकर काफी नुकसान पहुंचात हैं। नियन्त्रण हेतु नीम सीड करनेल एक्स्ट्रेट 5 प्रतिशत करन्ज ऑयल 1 प्रतिशत या डाईफेन्थुरॉन (50 डब्ल्यू पी) 2 ग्राम, न्युवालुरॉन (10 ईसी) 1 मिली, डीसीट्रान प्लस (0.5 प्रतिशत) मोनोक्रोटोफास 36 एस. एल. 1 मि.ली., ट्राईजोफोस (40 ईसी) (40 ईसी) 2.5 मिली/लीटर पानी ।


बारहमासी नींबू का केंकर रोग

जीवाणु से होने वाले इस रोग से पतियों, टहनियों व फलों पर भूरे रंग के मध्य से फटे खुरदरे व कार्कनुमा धब्बे स्पष्ट दिखाई देते हैं। रोगी पतियां गिर जाती है ।

टहनियो एवं शाखाओं पर लम्बे घाव बनते है। जिससे टहनियां टूट जाती है। इस रोग से कागजी नीम्बू को अधिक हानि होती है और रोपण से पूर्व पौधों पर बोर्डो मिश्रण 2: 2:250 या ताम्रयुक्त कवक नाशी 0.3 प्रतिशत का छिडकाव करें ।

रोग के प्रकोप को रोकने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 10 ग्राम एवं ब्लाईटॉक्स 200 ग्राम 100 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर अथवा सूडोमोनास फल्यूरोसेन्स जैविक उत्पाद की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल की 15 दिन के अन्तराल पर टहनियों की कटाई के बाद एवं जुलाई अगस्त फरवरी माह में करें।

कागजी नीम्बू के रोगग्रस्त पौधों पर चार छिडकाव फरवरी, जुलाई, अक्टूबर तथ दिसम्बर में करें ।


फाईटोफ्थोरा गलनी/गोंदाति रोग (गामोसिस

फाईटोफ्थोरा गलन के कारण पौधों की जड़ें एवं तने की छाल गलने लगती है तथा पतियाँ अन्दर की ओर मुड जाती हैं। तने पर भूमि के पास से और टहनियों के रोगग्रस्त भाग से गोंद जैसा पदार्थ निकालकर छाल पर बूदों के रूप में इकटठा हो जाता है।

जिसकी वजह से छाल सूख कर फट जाती है और भीतरी भाग भूरे रंग का हो जाता है। रोग के प्रकोप से अंत में पौधा मरने की स्थिति में पहुंच जाता है। नियंत्रण के लिए तने या टहनी की रोगग्रस्त छाल को हटा कर मेटालेक्सिलमेन्कोजेब (रिडोमिल एम. जेड 72 डब्ल्यू.पी) की 20 ग्राम मात्रा एक लीटर अलसी के तेल में घोल बनाकर रोग ग्रसित भाग पर लेंप दें।

साथ ही रिडोमिल एम. जेड. 25 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से 40-50 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधे की जड़ो को भिगो दें अथवा ट्राइकोडर्मा हरजैनियम की 60 ग्राम मात्रा प्रति पौधे के हिसाब से जड़ों के चारों तरफ खुरपे से मिटटी में मिलाकर 40-50 लीटर पानी पौधे के चारों तरफ भूमि पर छिडक देवें ।

इन समस्त क्रियाओं को फरवरी व अगस्त माह में करें तथा भूमि उपचार (रिडोमिल अथवा ट्राईकोडर्मा) को दोनो माह में 15 दिन के अन्तराल पर दोहरायें । बाग में पानी का प्रबन्ध इस प्रकार करें कि पानी तने के सीधे सम्पर्क में न आवे तथा रोग ग्रसित पौधे का पानी स्वस्थ पौधे में न जावें।

इसके अतिरिक्त बगीचें की देखभाल, पानी के अच्छे निकास, धूप, हवा आदि का ध्यान रोग से बचाव के लिए अति आवश्यक है [बारहमासी नींबू की खेती]।।


 विदर टिप या डाईबैक 

इस रोग से पत्तियों पर भूरे बैंगनी धब्बे बन जाते है। टहनियाँ ऊपर के नीचे की और सूखती हुई भूरी हो जाती है और पतियां सूख कर गिर जाती है। नियंत्रण हेतु रोगी भाग की छटाई के बाद ताम्र युक्त कवकनाशी (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड) तीन ग्राम या मैन्कोजेब दो ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए ।

इसके अतिरिक्त वर्ष में दो बार (अप्रेल व मई) में सूक्ष्म तत्वों का छिड़काव करें।


मूल ग्रन्थि (सूत्र कृमि

इसका प्रकोप नीम्बू की जड़ों पर होता है इसके प्रकोप से पतियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा टहनियां सूखने लगती हैं। जड़ गुच्छेदार बन जाती है। पेड़ पर फल छोटे व कम लगते हैं तथा जल्दी गिर जाते हैं । नियत्रंण हेतु कार्बोफ्यूरान (3जी) 20 ग्राम प्रति पेड़ पौधे की दर से प्रयोग करें ।


 फलों का गिरना  फल सड़न 

नीम्बू में रोगों एवं अन्य कारणों (जलवायु सम्बन्धी) से तुड़ाई पूर्व फलों का गिरना एवं तुडाई उपरान्त फल सडन से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी (बाविस्टीन) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या प्रोपीनेब 70 डब्ल्यू पी (एन्ट्राकोल) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या जैव नियंत्रक यीस्ट “स्पोरिडीयोबोलस पैरारोजेअस’ (के एफ वाई – 1) 109 सी. एफ. यू प्रति मिली पानी के धोल में पांच छिड़काव-मार्च अप्रैल, अगस्त, सितम्बर एवं अक्टूबर माह में करें ।



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