पौधों के सामान्य विकास के लिए मुख्यत: 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और फसल की पैदावार कम मिलती है।
कार्बन , हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते है।
प्रमुख पोषक तत्व – नाइट्रोजन , फास्फोरस एवं पोटाशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते है। इनकी पौधों को काफी मात्रा में जरूरत रहती है।
द्वितीयक पोषक तत्व– कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक को पौधे कम मात्रा में ग्रहण करते है।
सूक्ष्म पोषक तत्व -लोहा, जस्ता, मैंगनीज, तांबा, बोरोन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन तत्वों की पौधों को काफी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है।
रसायन नाम | नाइट्रोजन | फास्फोरस | पोटाश | ||
1 | यूरिया | 46% | – | – | |
2 | D.A.P (डाई अमोनियम फॉस्फेट) | 18% | 46% | – | |
3 | पोटाश | – | – | 60% |
किसान नाइट्रोजन को यूरिया के नाम से भी जानते हैं | नाइट्रेट (नाइट्रोजन का वह रूप जो पौधों का उपयोग करता है) पौधे की पत्ती के विकास को प्रभावित करके पत्ते को मजबूत बनाने में मदद करता है। यह क्लोरोफिल उत्पादन की मदद से पौधों को उनका हरा रंग देने के लिए भी प्रभावी है।
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नाइट्रोजन (N)
पौधों के सभी जीवित ऊतकों यानी जड़, तना, पत्ता की वृद्धि और विकास में सहायक है। नाइट्रोजन की सहायता से पत्ती वाली सब्जियों और हरे चारे की गुणवत्ता में सुधार करता है।
नाइट्रोजन की कमी के लक्षण
- पत्तियां किनारे से (नोक) की तरफ से पीली पड़ने लगती है। यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर पड़ता है, इसके बाद नई पत्तियां भी पीली पड़ने लगाती है।
- तना छोटा एवं पतला हो जाता है।
- पौधों की विकास रूक जाती है
- फूल कम या बिल्कुल नहीं लगते हैं व फूल और फल गिरना प्रारम्भ कर देते है।
- दाने कम व छोटे बनते है।
नाइट्रोजन के प्रयोग की विधि -पहला छिड़काव द्वारा एवं दूसरा मृदा में डालकर। दूसरा नाइट्रोजन की कमी का उपचार खड़ी फसल के खेतों की निकाई-गुड़ाई के बाद यूरिया का छिड़काव कर या यूरिया को 3-4 प्रतिशत का घोल बनाकर फसल के पत्तों पर छिड़काव लाभप्रद होता है
फास्फोरस (P)
फास्फोरस को किसान मुख्यतः डीएपी (D.A.P) के नाम से भी जानते हैं | D.A.P में अन्य पोषक तत्व भी होते हैं लेकिन मुख्य पोषक तत्व फास्फोरस होते हैं | फास्फोरस बीज, जड़ों और फूलों की वृद्धि के साथ सहायता के लिए जिम्मेदार है। फास्फोरस पौधों को मौसम सम्बन्धी तनाव और कठोर गर्मी व सर्दियों का सामना करने में भी मदद करता है। फास्फोरस कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक है।
फास्फोरस की कमी के लक्षण
- जड़ों का विकास रूक जाता है।
- पत्तियों का रंग गहरा हरा तथा किनारे कहरदार हो जाते है।
- पुरानी पत्तियां सिरों की तरफ से सूखना शुरू करती है तथा उनका रंग तांबे जैसा या बैंगनी हरा हो जाता है।
- फल कम लगते है, दानो की संख्या भी घट जाती है।
- अधिक कमी होने पर तना गहरा पीला पड़ जाता है।
- पौधों की वृद्धि कम हो जाती है।
फास्फोरस प्रयोग करने की विधि– बुआई से पहले कम्पोस्ट के साथ मिलाकर डालने से पौधों के लिए फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ जाती है। उर्वरक के रूप में एस.एस.पी. डी.ए.पी. एवं रॉक फ़ॉस्फेट को उपयोग में लाया जा सकता है।
पोटेशियम (K)
पोटेशियम मुख्यतः फ़सल के फल के विकाश में सहायक होता है | पोटेशियम के प्रयोग से फ़सल के फल या दाने आकार में बड़े हो जाते है और फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। फल के आकर व चमक में बढ़ोतरी करता है |
कठोर मौसम में भी (ठण्डे और बादलयुक्त) मौसम में पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया को बढ़ाते हैं, जिससे पौधों में ठण्डक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ाता है।
कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण, प्रोटीन संश्लेषण और इनकी स्थिरता बनाये रखने में मदद करता है। पौधों की रोग प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि होती है।
पोटाश की कमी के लक्षण
- फल व बीज पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते तथा इनका आकार छोटा, सिकुड़ा हुआ एवं रंग हल्का हो जाता है।
- पत्तियां छोटी पतली व सिरों की तरफ सूखकर भूरी पड़ जाती है और मुड़ जाती है।
- पुरानी पत्तियां किनारों और सिरों पर झुलसी हुई दिखाई पड़ती है तथा किनारे से सूखना प्रारम्भ कर देती है।
- तने कमजोर हो जाते है।
- पौधों पर रोग लगने की सम्भावना अधिक हो जाती है।
पोटाश प्रयोग करने की विधि- पोटाश की कमी को बुआई से पहले मिट्टी की जाँच से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर पोटाश उर्वरक की मात्रा डालकर या खड़ी फसल में पोटाशियम सल्फेट का 2-4 % घोल का छिड़काव कर उपचार किया जा सकता है |
कैल्शियम (Ca)
कोशिका भित्ति का एक प्रमुख अवयव है, जो कि सामान्य कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक होता है। कोशिका झिल्ली की स्थिरता बनाये रखने में सहायक होता है। एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
पौधों में जैविक अम्लों को उदासीन बनाकर उनके विषाक्त प्रभाव को समाप्त करता है। कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद करता है।
कैल्शियम की कमी के लक्षण
- नये पौधों की नयी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है। ये प्राय: कुरूप, छोटी और असामान्यता गहरे हरे रंग की हो जाती है। पत्तियों का अग्रभाग हुक के आकार का हो जाता है, जिसे देखकर इस तत्व की कमी बड़ी आसानी से पहचानी जा सकती है।
- जड़ो का विकास बुरी तरह प्रभावित होता है और जड़े सडऩे लगती है।
- अधिक कमी की दशा में पौधों की शीर्ष कलियां (वर्धनशील अग्रभाग) या ऊपर वाला भाग सूख जाती है।
- कलियां और फूल तैयार होने से पहले ही गिर जाते है |
- तने की संरचना कमजोर हो जाती है।
मैग्नीशियम (Mg)
क्लोरोफिल का प्रमुख तत्व है, जिसके बिना प्रकाश संश्लेषण (भोजन निर्माण) संभव नहीं है।
कार्बोहाइट्रेड-उपापचय, न्यूक्लिक अम्लों के संश्लेषण आदि में भाग लेने वाले अनेक एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
फास्फोरस के अवशोषण और स्थानांतरण में वृद्दि करता है।
मैग्नीशियम की कमी के लक्षण
- पुरानी पत्तियां किनारों से और शिराओं एवं मध्य भाग से पीली पडऩे लगती है तथा अधिक कमी की स्थिति से प्रभावित पत्तियां सूख जाती है और गिरने लगती है।
- कुछ सब्जी वाली फसलों में नसों के बीच पीले धब्बे बनाया जाते है और अंत में संतरे रंग के लाल और गुलाबी रंग के चमकीले धब्बे बनाया जाते है।
- पत्तियां आमतौर पर आकार में छोटी और अंतिम अवस्था में कड़ी हो जाती है और किनारों से अन्दर की ओर मुड़ जाती है।
- टहनियां कमजोर होकर फफूदीजनित रोग के प्रति सवेदनशील हो जाती है।
- पत्तियां तैयार होने से पहले ही गिर जाती है |
सल्फर: So4 ( गंधक )
सल्फर पौधे को रोग और बढ़ने और बीज बनाने में मदद करता है। वे अमीनो एसिड, प्रोटीन, एंजाइम और विटामिन के उत्पादन में भी सहायता करते हैं| क्लोरोफिल बनाने में मदद करता है। विटामिन के उपापचय क्रिया में योगदान करता है।गंधक दाल वाली फसलों में जड़ वृद्धि, बीज निर्माण एवं जड़ ग्रन्थियों के विकास में योग देता है
सल्फर (गंधक) की कमी के लक्षण –गंधक के अभाव में पौधे पीले, हरे, पतले और आकर में छोटे हो जाते हैं तथा पौधे का तना पतला और कड़ा हो जाता है।
सल्फर प्रयोग करने की विधि– खेतों की मिट्टी में सल्फर की कमी को दूर करने के लिए एस.एस.पी. फास्फोरस जिप्सम एवं सल्फर मिश्रित उर्वरक का प्रयोग बुआई से पहले लाभप्रद होता है |
1. |
जिप्सम
| कैल्शियम आक्साइड- 32.6% | सल्फर ट्राईआक्साइड-46.5% | 20.9% जल |
जिंक Zn(जस्ता )
पौधों द्वारा फास्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है। न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन-संश्लेषण में मदद करता है। हामोर्नों के जैव संश्लेषण में योगदान करता है। अनेक प्रकार के खनिज एंजाइमों का आवश्यक अंग है।
जिंक की कमी के लक्षण–
जिंक की कमी से तने की लम्बाई में कमी (गाँठो के मध्य भाग का छोटा होना) आ जाती है पत्तियाँ मुड़ जाती है। बालियाँ देर से निकलती है और फसल पकने में देरी होता है। मकई में सफेद कली (चित्ती) रोग हो जाती है। अंकुरण के बाद पुरानी पत्तियाँ सफेद रंग धारण कर लेती है।
धान में जिंक की कमी से पत्तों पर लाल भूरे रंग के धब्बे आ जाते है तथा पौधों का बढ़ाव रुक जाता है। “खैरा” नामक रोग जिंक की कमी से ही धान पर होता है।
जिंक प्रयोग करने की विधि– जिंक की कमी को दूर करने के लिए बुआई से पहले जिंक सल्फेट 25 कि./हें. उर्वरक का प्रयोग करे या इसके 1.0 प्रतिशत घोल जिसमें 0.25 प्रतिशत चूना मिला करके छिड़काव करना चाहिए।
तांबा
पौधों में विटामिन ए के निर्माण में वृद्दि करता है।
अनेक एंजाइमों का घटक है।
लोहा Iron (Fe)
पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण और रख रखाव के लिए आवश्यक होता है। न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में एक आवश्यक भूमिका निभाता है। अनेक एंजाइमों का आवश्यक अवयव है।
लोहा कमी के लक्षण–
1.मध्य शिरा के बीच और उसके पास हरा रंग उडऩे लगता है। नयी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है। पत्तियों के अग्रभाग और किनारे काफी समय तक आना हरा रंग बनाये रहते है।
- 2. अधिक कमी की दिशा में, पूरी पत्ती, शिराएं और शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है। कभी कभी हरा रंग बिल्कुल उड़ जाता है।
मैगनीज (Mn)
प्रकाश और अन्धेरे की अवस्था में पादप कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं को नियंत्रित करता है। नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ा देता है। पौधों में होने वाली अनेक महत्वपूर्ण एंजाइमयुक्त और कोशिकीय प्रतिक्रियाओं के संचालन में सहायक है।
कार्बोहाइट्रेड के आक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन आक्साइड और जल का निर्माण करता है।
मैगनीज की कमी के लक्षण
- नयी पत्तियों के शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है, बाद में प्रभावित पत्तियां मर जाती है।
- नयी पत्तियों के आधार के निकट का भाग धूसर रंग का हो जाता है, जो धीरे-धीरे पीला और बाद में पीला- नारंगी रंग का हो जाता है।
- अनाज वाली फसलों में ग्रे स्प्रेक खेत वाली मटर में मार्श स्पाट और गन्ने में स्टीक रोग आदि रोग लग जाते हैं।
बोरोन (B)
प्रोटीन-संश्लेषण के लिये आवश्यक है। कोशिका विभाजन को प्रभावित करता है। कार्बोहाइड्रेट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है साथ ही कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण में योग देता है। कैल्शियम के अवशोषण और पौधों द्वारा उसके उपयोग को प्रभावित करता है। एंजाइमों की क्रियाशीलता में परिवर्तन लाता है।
बोरोन की कमी के लक्षण
- फसल में बोरॉन की कमी से उपज बहुत ही कम हो जाती है।
- कमी के लक्षण प्राय: नई निकलती हुई पत्तियों में पाये जाते हैं।
- पत्तियाँ मोटी एवं कड़ी होकर नीचे की ओर मुड़ जाती है, तने की फुनगी मर जाती है। धान में इस तरह के लक्षण देखे जाते हैं।
- बोरॉन की कमी से फूलगोभी, चुकन्दर इत्यादि में आंतरिक गलन हो जाता है। चना एवं मटर की फसल पर भी बोरॉन की कमी पाई जाती है।
- भूमि में उपलब्ध बोरॉन की कमी से फूलगोभी में भूरा रोग, लहसुन में पीली फुनगी रोग,तम्बाकू में शिखर रोग एवं नींबू के फल कठोरपन से ग्रसित होते है।
- बोरोन की कमी के – चुकन्दर, गाजर, फूलगोभी में इसकी कमी से पौधों का शीर्ष भाग मर जाता है और बगल से कलियाँ निकलने लगती है। पत्तियों की तने मरने लगती हैं एवं पत्तियाँ पीली हो जाती है।
मोलिब्डेनम molybdenum (Mo)
कई एंजाइमों का अवयव है। नाइट्रोजन उपयोग और नाइट्रोजन यौगिकीकरण में मदद करता है। नाइट्रोजन यौगिकीकरण में राइजोबियम जीवाणु के लिए आवश्यक होता है।
मोलिब्डेनम कमी के लक्षण- इसकी कमी में नीचे की पतियों की शिराओं के मध्य भाग में पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में पत्तियों के किनारे सूखने लगते है और पत्तियां अन्दर की ओर मुड़ जाती है।
- फूल गोभी की पत्तियां कट-फट जाती है, जिससे केवल मध्य शिरा और पत्र दल के कुछ छोटे-छोटे टुकड़े ही शेष रह जाते हैं। इस प्रकार पत्तियां पूंछ के सामान दिखायी देने लगती है, जिसे हिप टेल कहते है।
- मोलिब्डेनम की कमी दलहनी फसलों में विशेष रूप से देखी जाती है।
क्लोरीन chloride (Cl):-
क्लोरीन पादप हामोर्नों का अवयव है। पौधों की पत्तियो में पानी रोकने की क्षमता को बढ़ाता है। बीजों में यह इण्डोलएसिटक एसिड का स्थान ग्रहण कर लेता है। एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है। कवकों और जीवाणुओं में पाये जाने वाले अनेक यौगिकों का अवयव है। पौधों के सर्वांगीण विकास एवं वृद्धि के लिये उपर्युक्त सभी पोषक तत्वों की उपलब्धता आवश्यक है।
क्लोरीन कमी के लक्षण– पत्तियों का अग्रभाग मुरझा जाता है, जो अंत में लाल रंग का हो कर सूख जाता है।

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