मोरिंगा, जिसे “सहजन” या “ड्रमस्टिक” भी कहा जाता है, एक अत्यंत पौष्टिक और लाभकारी पौधा है। इसकी पत्तियां, फूल, और फल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यदि इसे जैविक तरीके से उगाया जाए, तो यह स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होता है। इस ब्लॉग में, हम मोरिंगा की जैविक खेती के हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।

भूमि का चयन और तैयारी
मोरिंगा के लिए ऐसी भूमि चुनें जहां पानी का ठहराव न हो। हालांकि यह पौधा लगभग हर प्रकार की मिट्टी में उग सकता है, लेकिन रेतीली दोमट मिट्टी सबसे बेहतर होती है। भूमि का pH स्तर 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेती शुरू करने से पहले खेत को गहरी जुताई से तैयार करें। जैविक खेती के लिए गोबर की खाद का उपयोग करें। प्रति एकड़ 10-15 टन गोबर की खाद डालने से मिट्टी उपजाऊ बनती है। साथ ही, मिट्टी की जल निकासी की क्षमता बेहतर होनी चाहिए।
बीज और कटिंग का चयन
मोरिंगा की खेती बीज या कटिंग दोनों से की जा सकती है। यदि बीज से खेती कर रहे हैं, तो ताजे और स्वस्थ बीज का उपयोग करें। बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोने से अंकुरण में तेजी आती है। कटिंग से खेती करने के लिए, 1-2 इंच मोटी और 1 मीटर लंबी कटिंग का चयन करें। कटिंग को सीधे मिट्टी में लगाएं और नमी बनाए रखें।
रोपाई का सही समय और दूरी
मोरिंगा की खेती के लिए जुलाई-अगस्त (वर्षा ऋतु) सबसे अच्छा समय है। यदि आपके पास सिंचाई की सुविधा है, तो फरवरी-मार्च में भी रोपाई कर सकते हैं। पौधों के बीच 3 मीटर और पंक्तियों के बीच 4 मीटर की दूरी रखें। यह दूरी पौधों को पर्याप्त सूर्य प्रकाश और हवा प्राप्त करने में मदद करती है, जिससे उनका विकास बेहतर होता है।
जैविक खाद और उर्वरक का उपयोग
जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों के बजाय प्राकृतिक खाद का उपयोग किया जाता है। प्रारंभिक चरण में प्रति एकड़ 10-15 टन गोबर की खाद और 1 टन वर्मी कंपोस्ट डालें। पौधों के बढ़ने के बाद, हर तीन महीने में जैविक खाद डालें। नीम की खली का उपयोग भी लाभकारी होता है। प्रति एकड़ 250-300 किलो नीम खली का उपयोग पौधों की गुणवत्ता बढ़ाता है।
सिंचाई और पानी की आवश्यकता
मोरिंगा की जड़ें गहरी होती हैं, जिससे यह सूखा सहन कर सकता है। लेकिन अच्छी उपज के लिए नियमित सिंचाई जरूरी है। गर्मियों में हर 7-10 दिन पर और सर्दियों में हर 15-20 दिन पर सिंचाई करें। पानी का भराव जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
कीट और रोग प्रबंधन
जैविक खेती में कीटनाशकों के बजाय प्राकृतिक उपायों का उपयोग करें। कीटों से बचाव के लिए नीम के तेल का स्प्रे करें। प्रति लीटर पानी में 5 मिली नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें। जैविक ट्रैप का उपयोग कर कीटों को फंसाया जा सकता है। पौधों का नियमित निरीक्षण करें और रोगग्रस्त हिस्सों को तुरंत हटा दें।
फसल कटाई और उपज
मोरिंगा के पत्ते, फूल, और फल सभी उपयोगी होते हैं। बीज बोने के 60-90 दिनों के बाद पत्तियों की पहली कटाई की जा सकती है। हर 30-45 दिनों में पत्तियां काटी जा सकती हैं। फलों के लिए, रोपाई के 6-8 महीने बाद कटाई शुरू करें। फलों को पूरी तरह से विकसित होने पर ही तोड़ें।
मोरिंगा उत्पादों के बाजार और लाभ
मोरिंगा के पत्ते, पाउडर, बीज, और तेल की मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेजी से बढ़ रही है। जैविक उत्पादों की कीमत अधिक होती है, जिससे आपको अच्छा मुनाफा हो सकता है। इसकी खेती से न केवल आर्थिक लाभ मिलता है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा पहुंचता है।
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निष्कर्ष: मोरिंगा की खेती कैसे करें
मोरिंगा की जैविक खेती एक सरल और लाभदायक प्रक्रिया है। जैविक खाद, पानी और प्राकृतिक कीट नियंत्रण के सही उपयोग से आप बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं। इस खेती को अपनाकर आप अपने स्वास्थ्य, पर्यावरण, और आय में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।