मक्का की खेती भारत में मुख्य फसलों में से एक है। सही बीज का चयन मक्का की उपज को बढ़ाने और लागत को कम करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है। यहां देशी मक्का की खेती के लिए सही बीज और उससे जुड़े सभी पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी गई है।
देशी मक्का की किस्में
नरेंद्र मक्का 2:
यह किस्म उत्तर भारत के किसानों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल तक होती है, जो इसे एक लाभकारी विकल्प बनाती है। यह किस्म सूखा प्रतिरोधी है और कम सिंचाई में भी अच्छा उत्पादन देती है। इसे खरीफ और रबी, दोनों मौसमों में बोया जा सकता है।
विवेक संकर मक्का:
यह किस्म पूरे भारत में उगाई जा सकती है और प्रति हेक्टेयर 30-35 क्विंटल तक की उच्च उपज देती है। यह कीट और रोग प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को कम नुकसान होता है। इसके अलावा, यह कम समय में पककर तैयार हो जाती है, जिससे खरीफ मौसम में इसे उगाना विशेष रूप से लाभकारी होता है।
मालवी मक्का:
मध्य भारत और राजस्थान के किसानों के लिए यह किस्म आदर्श है। सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी यह प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल तक की उपज देती है। इसकी खासियत सूखा सहनशीलता है, जो इसे कम पानी में भी उपजाऊ बनाती है। यह किस्म खरीफ और जायद, दोनों मौसमों में बुवाई के लिए उपयुक्त है।
स्वदेशी बीज कंपनियां
मक्का की खेती के लिए सही और प्रमाणित बीज का चुनाव करना आवश्यक है। स्वदेशी बीज कंपनियां जैसे “महिको” और “नाफेड” किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराती हैं। “महिको” संकर और देशी दोनों प्रकार के मक्का बीज प्रदान करती है, जबकि “नाफेड” सरकारी प्रमाणित बीजों की आपूर्ति करती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की शाखा “आईआईएचआर” उन्नत किस्मों के बीज तैयार करती है, जो उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में बेहतर होते हैं।

बीज चयन करते समय ध्यान देने योग्य बातें
बीज का चयन करते समय स्थानीय जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता का ध्यान रखना आवश्यक है। मक्का की किस्में क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल होनी चाहिए, जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए सूखा सहनशील बीज। मिट्टी का प्रकार भी महत्वपूर्ण है; मक्का के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही, बीज को उन रोगों के प्रति प्रतिरोधी होना चाहिए, जो मक्का की फसल को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे पत्तियों का झुलसा और डंठल सड़न।
अच्छी उत्पादकता के लिए सुझाव
मक्का की अच्छी उपज के लिए बुआई से पहले बीज का अंकुरण परीक्षण करना चाहिए। अंकुरण परीक्षण से पता चलता है कि बीज कितने प्रतिशत अंकुरित होंगे। बीजोपचार भी आवश्यक है; बीज को कवकनाशी से उपचारित करना चाहिए ताकि मिट्टी में मौजूद रोगाणुओं से फसल को बचाया जा सके। मक्का की खेती में जैविक खाद और रासायनिक उर्वरक दोनों का संतुलित उपयोग करना चाहिए। साथ ही, समय पर सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण करके फसल की उपज को बढ़ाया जा सकता है।
बीज खरीदने के लिए सलाह
बीज खरीदते समय केवल प्रमाणित विक्रेताओं से बीज लेना चाहिए। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से भी संपर्क कर सकते हैं, जहां विशेषज्ञ सही किस्मों की सिफारिश कर सकते हैं। बीज के पैकेट पर अंकित प्रमाण पत्र, उत्पादन तिथि, और गुणवत्ता की जानकारी जांचना जरूरी है ताकि फसल के लिए सही बीज का चयन हो सके।
मक्का की बुआई के लिए समय
मक्का की बुआई के लिए सही समय का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। खरीफ सीजन के लिए जून से जुलाई, रबी सीजन के लिए अक्टूबर से नवंबर, और जायद सीजन के लिए फरवरी से मार्च सबसे उपयुक्त समय हैं। सही समय पर बुआई करने से फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होता है।
मक्का की उपज बढ़ाने के उपाय
मक्का की अच्छी उपज के लिए उन्नत बीज का उपयोग, सही समय पर सिंचाई, और संतुलित उर्वरकों का उपयोग जरूरी है। मिट्टी परीक्षण करवाकर उसमें आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। कीट और रोगों का समय पर प्रबंधन करके फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है। यह सब उपाय अपनाकर किसान मक्का की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं और बेहतर आय प्राप्त कर सकते हैं।
मक्का की बुवाई कैसे और कब करें?
मक्का को जैविक तरीके से उगाने के लिए सही समय और तकनीकों का पालन करना बेहद जरूरी है। बारिश के मौसम में मक्का की बुवाई का सबसे सही समय होता है। यदि सिंचाई के साधन उपलब्ध हों, तो बुवाई बारिश से 10-15 दिन पहले भी की जा सकती है। इससे फसल की वृद्धि बेहतर होती है। जैविक खेती में प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करने से फसल न केवल स्वस्थ होती है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
मक्का के बीज को खेत की मेड़ों के किनारे और ऊपर 3 से 5 सेमी गहराई में बोना चाहिए। बुवाई के एक महीने बाद मिट्टी को पौधों के पास चढ़ाना जरूरी है। इससे पौधों को पर्याप्त पोषण मिलता है और वे मजबूत बनते हैं। जैविक खेती में खेत में पौधों की संख्या 55,000 से 80,000 प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रखें ताकि पौधों को पर्याप्त स्थान और पोषण मिल सके।
मक्का की बुवाई में कतार और दूरी का ध्यान रखें
मक्का की जैविक खेती में पौधों और कतारों के बीच सही दूरी रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों के लिए यह दूरी क्रमशः 75 सेमी और 25 सेमी होनी चाहिए। अगर मक्का को हरे चारे के रूप में उगाया जा रहा है, तो कतार से कतार की दूरी 40 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी रखें। सही दूरी रखने से पौधे अच्छी तरह बढ़ते हैं और जैविक तरीके से उपज अधिक होती है।
जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
मक्का को जैविक तरीके से उगाने के लिए खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान देना चाहिए। खेत को 2-3 बार अच्छे से जोतकर समतल और खरपतवार मुक्त बनाएं। खेत की मिट्टी में गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, या नीम की खली जैसी जैविक खाद मिलाएं। ये खाद न केवल मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, बल्कि पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करती हैं।
बुवाई से पहले बीजों को जैविक उपचार करें। इसके लिए बीजों को गौमूत्र या नीम की पत्तियों के काढ़े में भिगोकर सुखा लें। इससे बीज रोगमुक्त रहते हैं और उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ती है।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
जैविक मक्का की खेती में सिंचाई का खास ध्यान रखना चाहिए। बारिश के दौरान अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं होती, लेकिन यदि बारिश कम हो, तो समय-समय पर सिंचाई करें। बुवाई के तुरंत बाद और पौधों में फूल लगने के समय विशेष रूप से सिंचाई करना आवश्यक है।
खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए हाथों से नियमित रूप से निकालें। जैविक खेती में खरपतवारनाशक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता, इसलिए खेत को साफ-सुथरा रखना जरूरी है। गीली घास (मल्च) का उपयोग करें, जो न केवल खरपतवार को बढ़ने से रोकता है, बल्कि मिट्टी की नमी को भी बनाए रखता है।
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जैविक खेती के फायदे
जैविक तरीके से मक्का उगाने से न केवल फसल स्वस्थ होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी लंबे समय तक बनी रहती है। जैविक खेती में रसायनों का उपयोग न करने से पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता। इस तरीके से उगाई गई फसल का स्वाद और पोषण मूल्य बेहतर होता है। किसान को इससे अधिक लाभ मिलता है क्योंकि जैविक उत्पादों की बाजार में अधिक मांग होती है।
निष्कर्ष
जैविक खेती न केवल हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि यह मिट्टी और फसल की गुणवत्ता को भी बनाए रखती है। मक्का की जैविक खेती को अपनाकर किसान स्वस्थ फसल के साथ-साथ बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए केवल प्राकृतिक साधनों और तकनीकों का उपयोग करें और रसायनों से बचें।